Analysis : लोकतंत्र की गंभीर चुनौतियां, जनता की घटती आस्था

[डॉ.एकवर्मा]। दिल्लीकेमुख्यमंत्रीअरविंदकेजरीवालधरनेपरहैं,कर्नाटककेनवनियुक्तमुख्यमंत्रीएचडीकुमारस्वामीकुर्सीकोलेकरचिंतितहैंऔरउत्तरप्रदेशकेपूर्वमुख्यमंत्रीअखिलेशयादवमुख्यमंत्रीआवासखालीकरनेकेआक्रोशकोआवासीय-विध्वंससेव्यक्तकररहेहैं।यहसबयहीबताताहैकिआमजनतालोकतंत्रकीगंभीरचुनौतियोंसेजूझनेकोविवशहै।यद्यपिलोकतंत्रमेंउसकीनिष्ठाबनीहुईहै,लेकिनलोकतांत्रिकसंस्थाओं,प्रक्रियाओंऔरजनप्रतिनिधियोंमेंउसकीआस्थाघटरहीहै।रोज-रोजहोनेवालीराजनीतिकउठापटकइसकेलिएजिम्मेदारहै।राजनीतिकदलोंकाव्यवहारगैर-जिम्मेदारानाहोगयाहै।वेकेवलचुनावऔरसत्ताकीचिंताकरतेहैं।उनकाव्यवहार,कार्य-संस्कृति,मूल्य,भाषाऔरदूसरेदलोंकेप्रतिदृष्टिकोणचिंतनीयहै।संसदऔरविधानसभाएंगंभीरबहसोंकेकमऔरहो-हल्लाएवंआरोप-प्रत्यारोपकेमंचज्यादाहोगएहैं।मंत्रीगणऔरजनप्रतिनिधिजनहितकेबजायस्वहितपरकेंद्रितहोगएहैं।अबतोन्यायपालिकापरभीअंगुलियांउठनेलगींहै।क्याऐसेहीलोकतंत्रकीपरिकल्पनाहमारेसंविधाननिर्माताओंनेकीथी?

लोकतंत्रमेंसत्तापरिवर्तनऔरदलोंकीहार-जीतहोतीरहेगी,समस्याएंबनती-बिगड़तीरहेंगीऔरजनताउनसेजूझतीरहेगीपरंतुहमेंसोचनाहोगाकिकहींहमारेपूर्वजोंकीकुर्बानीव्यर्थतोनहींजारही?जिसतेजीसेवर्तमानपीढ़ीअपनेअतीतसेकटतीजारहीहैवहएकबहुतबड़ाकारणहैकिहमअपनेपूर्वजोंकीकुर्बानियोंकेप्रतिअसंवेदनशीलहोगएहैंऔरअपनेलोकतंत्रकीवर्तमानस्थितिसेसमझौताकरबैठेहैं।स्वतंत्रताकेसातदशकोंबादभीहमारेलोकतंत्रकेसमक्षकुछज्वलंतप्रश्नअनुत्तरितहैं।क्याहमस्वतंत्रताऔरस्वराज्यमेंसमरसतास्थापितकरसकेहैं?आखिरआमआदमीकोगरीबी,भुखमरी,अशिक्षाऔरबीमारीसेछुटकाराक्योंनहींमिलसका?आजभीवहअपनेवोटकोनोटसेक्योंतौलदेताहै?गांधीजीनेजिस‘अंतिम-आदमी’काउल्लेखकियाथा,वहआजभीअंतिमछोरपरहीक्योंखड़ाहै?अनगिनतसरकारीयोजनाओंपरअसीमितधनव्ययहोनेकेबावजूदअन्नदाताओंकीआत्महत्याकासिलसिलाकायमहै।भ्रष्टाचारकेदीमकनेविकासकोखोखलाकरदियाहै।औपनिवेशिकपरिप्रेक्ष्यमेंगांधीजीजरूर‘स्वराज्य’को‘सुराज्य’सेबेहतरसमझतेथे,लेकिनबदलेपरिप्रेक्ष्यमेंक्या‘स्वराज्य’को‘सुराज्य’कापर्यायनहींहोनाचाहिए?

संविधानद्वाराराजनीतिकसमानतादिएजानेकेबावजूदसामाजिकअसमानताआजभीक्योंबनीहुईहै?हमप्राय:जाति-प्रथाकारोनारोकरसामाजिकअसमानताकाऔचित्यसिद्धकरतेहैं,लेकिनक्याआरक्षणकेअलावाहमनेकोईप्रयासकियाउसेदूरकरनेका?आरक्षणतोएक‘सीमित-समाधान’है।यूनानीदार्शनिकप्लेटोनेकहाथाकिसमाजमेंअच्छेऔरबुरेदोकिस्मकेनेतृत्वहोतेहैं-अच्छेवेजोसमाजको‘असीमित’औरबुरेवेजोउसे‘सीमित’कीओरलेजातेहैं।‘सीमित’कीओरलेजानेपरसमाजमेंसंघर्षस्वाभाविकहै।इसीलिएआरक्षणकामुद्दाहमेशासामाजिकसंघर्षकोहवादेताहै।वहसामाजिकसमानताऔरन्यायकोसुनिश्चितकरनेकाकोई‘जादुई-चिराग’नहीं।अलबत्ताउससेसमाजमेंदुर्भाव,हिंसा,घृणा,विद्वेष,अन्यायआदुष्प्रवृत्तियांजरूरबलवतीहोतीहैं।क्याहमनेकभीविचारकियाकिसामाजिकअसमानतादूरकरनेकेऔरक्या-क्यातरीकेहोसकतेहैं?प्रश्नयहभीहैकिहमवैयक्तिकऔरसामाजिकविकासमेंसमरसताक्योंस्थापितनहींकरसके?

भारतीयसंविधानव्यक्तिऔरसमाज,स्वतंत्रताऔरसमानता,दोनोंमेंसामंजस्यस्थापितकरनेकासंकल्पलेकरचलाथा,लेकिनहमइतनेव्यक्तिकेंद्रितहोगएकिउनतमामसामाजिकइकाइयोंकोबहुतपीछेछोड़आएजोहमारेवैयक्तिकउन्नयनकीआधारशिलाथीं।संयुक्तपरिवारटूटगए,पड़ोसखत्महोगए,रिश्तेदारियांजीवन-मरणऔरशादी-विवाहतकसिमटगईंऔर‘व्यक्ति’निहायत‘अकेला’होगया।क्याऐसेहीएकाकीएवंव्यक्तिकेंद्रितलोकतंत्रकीपरिकल्पनाकीथीहमने?सामाजिकहितसेउदासीनऐसेहीमूल्यविहीनव्यक्तियोंनेराजनीतिकसंस्कृतिप्रदूषितकरवैयक्तिकएवंसामाजिकसमरसतामेंबाधाउत्पन्नकीहै।हमने‘स्वहित’और‘लोकहित’मेंदूरीबढ़ादीहैऔरहमसमाजकेप्रतिअसंवेदनशीलहोगएहैं।हमकेवलअपने,अपनीजातिऔरअपनेधर्मकेबारेमेंसोचतेहैं।समाजऔरदेशकेबारेमेंनहीं।सच्चेलोकतंत्रकेलिएकेवललोकतांत्रिकसंरचनाएंऔरप्रक्रियाएंहीनहीं,लोकतांत्रिकमनोविज्ञानभीजरूरीहै।क्याहमनेइसजरूरीमनोविज्ञानकीस्थापनाकेलिएकुछकिया?भारतीयलोकतंत्रऐसेहीअनेकप्रश्नोंसेजूझरहाहै।क्याकभीइनकेसमाधानहोसकेंगे?जनताकिसेदोषीमाने?उसकेपाससंविधान,संवैधानिकसंस्थाओंऔरजनप्रतिनिधियोंकोउत्तरदायीमाननेकेअलावाविकल्पभीक्याहै?हमेंउसनकीकल्पनाजरूरकरनीचाहिएजबजनाक्रोशअपनीलक्ष्मणरेखालांघेगा।

चूंकिजनताकीनिष्ठालोकतंत्रमेंबनीहुईहैइसलिएउसीमेंआशाकीकिरणभीदिखरहीहै।आजादीकेसमययुवावर्गअपनासबकुछछोड़करस्वतंत्रतासंग्राममेंकूदपड़ाथा।आजादीमिली,लोकतंत्रआया,लेकिनउसकीआत्माअभीभटकरहीहै।आजजिसदोराहेपरभारतीयलोकतंत्रहैउसेसहीदिशामेंलेजानेकेलिएयुवावर्गकोउसभटकतीआत्माकोआजादीऔरलोकतंत्रकेशरीरमेंफिरसेकरनापड़ेगा।युवावर्गनेएककुर्बानीस्वतंत्रताकेपहलेदीथी।आजउसीयुवावर्गसेदेशएकऔरकुर्बानीमांगरहाहै-खासतौरसेवहयुवावर्गजोशिक्षितहै,जोअच्छीनौकरियांकररहाहैऔरजिसकेपाससमाजकोदेनेकेलिएकुछहै।सवालउठताहैकियुवाकुर्बानीदेंभीतोकैसे?उसकामनोविज्ञानतोप्रदूषितहै।

उसेतोयहीबताया-सिखायागयाहैकिराजनीतिएकगंदीचीजहैऔरउसमेंकेवलवहीलोगहैंजिनकेपासधनबलऔरबाहुबलहै।वहगलतभीनहींहै।1990मेंदेशमें‘नव-उदारवाद’केआगमनसेराजनीतिपरबाजारएवंपूंजीऔरज्यादाहावीहोगई।इससेगरीबव्यक्तिकेराजनीतिमेंआनेकीसंभावनाएंऔरभीधूमिलहोगईहैं।राजनीतिकास्वरूप‘हवा’कीतरहहै।प्रदूषितस्थलसेप्रवाहितहोनेपरवहदुर्गंधहैऔरबाग-बगीचेसेप्रवाहितहोनेपरसुगंध।स्वतंत्रताआंदोलनमेंहिंदुस्तानीबागके‘बेहतरीन-पुष्पों’कीकुर्बानीनेराजनीतिकोजोसुगंधदीउसकीखुशबूसेआजभीहमाराचमनमहकताहै,लेकिनआजादीकेबादस्थितिबदलगई।आजहमेंफिरवहीपुष्पचाहिए।राजनीतिसंघर्षोंकोजन्मदेनेवालीनहीं,संघर्षोंकेसमाधानकीकुंजीहै।समाजमेंबढ़तेसंघर्षउससमाजमेंघटतीराजनीतिकासंकेतहै।राजनीतिकेदोहीकामहै-सामाजिकसंघर्षोंकासमाधानऔरलोककल्याण।यदिशिक्षितयुवा-वर्गइसेअपनेएजेंडेपरनहींलेगातोकौनलेगा?

(लेखकसेंटरफॉरदस्टडीऑफसोसायटीएंडपॉलिटिक्सकेनिदेशकएवंवरिष्ठस्तंभकारहैं)