आत्मज्ञान

आचार्यअष्टावक्रजी‘अष्टावक्रगीता’मेंकहतेहैंकिमनुष्यशरीरमात्रशरीरनहींहै।वहचैतन्यआत्माहै।आत्माहीइसशरीरकीपोषकहै।जैसेहीआत्माशरीरसेबाहरनिकलतीहै,शरीरविकृतहोनेलगताहै।बुद्धि,कर्म,भोग,अहंकार,लोभ,मोहशरीरऔरमनकेधर्महैं,आत्माकेनहीं।आत्मज्ञानकेअभावमेंऐसीभ्रांतिहुआकरतीहैकिमैंएकशरीरहूं,आत्मानहीं।यहीतोअज्ञानहै।पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,आकाशइनपांचतत्वोंसेमिलकरशरीरबनताहैजोभौतिक,अनित्यऔरनष्टहोनेवालाहै।मृत्युकेउपरांतशरीरनष्टहोजाताहै,परहमशरीरकेनष्टहोजानेकेबादभीअगलीयात्रापरनिकलजातेहैं।जैसेपुरानेवस्त्रोंकोछोड़करनयावस्त्रधारणकरलेतेहैं।यहशरीरहमारावस्त्रमात्रहैजोभौतिकपदार्थोंसेमिलकरबनाहै।हमसबघरनहीं,बल्किइसमेंरहनेवालेमालिकहैं।हमशरीरनहींआत्माहैंजोचैतन्यहै।आत्माकीनकोईजातिहोतीहैऔरनहीइसकालिंगहोताहै।येचारआश्रम-ब्रह्मचर्य,ग्रहस्थ,वानप्रस्थऔरसंन्यासवालीभीनहींहै।आत्मानकर्ताहैऔरनभोक्ताहैऔरनहीभोग्यविषयहै।इनतीनोंसेपरेअसंग,निराकारऔरसाक्षीमात्रहै।कुछलोगकहतेहैंकियहघोरकलयुगहै,यहपंचमकालहै।इसमेंतोमुक्तिहोहीनहींसकती।कुछकहतेहैंकिआजसेप्रयासकरोतोसातजन्मोंबादमुक्तिमिलेगी।इससंदर्भमेंआचार्यअष्टावक्रघोषणाकरतेहैंकि‘तुमअपनेकोचैतन्यमेंस्थिरकरलोतोअभीमुक्तकोउपलब्धहोसकतेहो।’जैसेदीपकजलतेहीअंधेरागायबहोजाताहैउसीतरहक्याआत्मज्ञानकेप्रकाशसेअज्ञानरूपीअंधकारगायबनहींहोसकता।अज्ञानकेमिटतेहीजीवकीसभीभ्रांतियांमिटजातीहैं।आत्मामुक्तहै,सर्वत्रव्यापकहै,वहकिसीबंधनमेंबंधीनहींहै।शरीरसीमितहैआत्माकिसीएकशरीरयामनमेंबंधीनहींहै।सारीभिन्नताशरीरगतहै।आत्माकाकोईरूपनहींहै,वहनिराकारहै।उसीनिराकारकारूपसृष्टिहै।आकारबनतेहैं,बिगड़तेहैं,किंतुमूलतत्ववहीरहताहै।जैसेसोनेसेविभिन्नआभूषणबनतेहैं,बिगड़तेहैं,किंतुमूलतत्वसोनावहीरहताहै।आत्मापरमात्माऔरब्रह्मएक-दूसरेकेपर्यायहैं।हमारीदेहतोमरणधर्माहै,यहतोजाएगीऔरअंतत:नष्टहोगी।[बरजोरसिंह ]