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राजग से अलग हुए चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेदेपा से भी वह संपर्क साध रही हैं। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ममता का फेडरल फ्रंट बनाने का नया प्रयास कितना कामयाब होता है, ये तो वक्त बताएगा। इस समय भारतीय राजनीतिक दल दो भागों में बंटे हुए हैं। एक गुट भाजपा के साथ हैं तो दूसरा कांग्र्रेस के साथ। ऐसे में क्या गैर-भाजपाई व गैर-कांग्रेसी दल फिर से एकजुट होकर 2019 के लोकसभा चुनाव में देश की जनता के समक्ष विकल्प पेश कर पाएंगे? क्या जनता को स्वीकार होगा कि देश की सत्ता ऐसे फ्रंट के पास जाए, जो एक-दूसरे की बैशाखी पर चलने वाली हो? या फिर एक मजबूत सरकार बने? लोग देख चुके हैं कि मोरारजी देसाई से लेकर वीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का क्या हाल हुआ था? हालांकि, 1999 व 2004 से 2014 में भी गठबंधन की सरकार ही रही लेकिन इसमें महती भूमिका भाजपा व कांग्रेस की थी। ऐसे में फेडरल फ्रंट का क्या होगा, ये तो भविष्य के गर्त में है।