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3. वैसे तो पूरा भारत ही रंग को लेकर संवेदनशील है. सुंदर व्यक्ति को सदा से सुशील, गुणवान मानने की प्रथा रही है. विशेषकर हिंदी पट्टी, उत्तर भारत में गोरा होना विशेषाधिकार है. काले होने के मायने किसी व्यक्ति के जीवन को हमेशा के लिए निराशा की खाई में झोंक देने जैसा है. युवा तो रंग को लेकर लगभग पागल हैं. सांवले की सुपरलेटिव डिग्री वाले काले रंग के व्यक्ति को भी संगिनी गोरी चाहिए. इसी तरह शादी योग्य लड़कों की ‘तलाश’ में भी रंग जरूरी आयाम है.