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नई दिल्ली। मेजर ध्यानचंद, अरुण जेटली, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, छत्रसाल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, तालकटोरा, अंबेडकर स्टेडियम..तमाम स्टेडियम की आज लंबी फेहरिस्त है। सब समृद्ध हैं। सुविधा संपन्न हैं। अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स को दम भरते हैं। हों भी क्यों न आखिर ये वही दिल्ली तो है जिसने स्वाधीनता की खुली हवा में सांस लेते हुए खुदको बनाते..संवारते..संभालते समय में ही 1951 में पहले एशिया गेम्स की मेजबानी की। दिल्ली की आदत भी है दम उसी जीवटता से भरती है कि कुछ कर गुजर जाती है। खेल की दुनिया में भी उसने संसाधनों की संपन्नता से ऐसे सपने संजो लिए हैं। तभी आज सचमुच आज खेल ‘रत्न’ दिल्ली लगती है। ऐसी ही खेलों से खिलखिलाती दिल्ली से रूबरू करा रही हैं प्रियंका दुबे मेहता :