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नई दिल्ली अमेरिका में अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल भारतीय मूल के बॉबी जिंदल पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने निशाना साधा है। थरूर ने एक लेख में कहा है कि जब बॉबी जिंदल खुद को भारतीय के रूप में देखा जाना पसंद नहीं करते तो भारतीयों को उनके ऊपर गर्व क्यों होना चाहिए। लुसियाना प्रांत के गवर्नर जिंदल ने बुधवार को न्यू ओर्लियांस में राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की। रिपब्लिकन नेता बॉबी वाइट हाउस की दौड़ में शामिल होने वाले भारतीय मूल के पहले व्यक्ति हैं। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे आर्टिकल 'क्या हमें बॉबी जिंदल पर गर्व होना चाहिए?' में जिंदल को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं। थरूर ने लिखा है, ‘जब बॉबी जिंदल को अमेरिकन स्टेट लूसियाना का गवर्नर चुना गया था, भारतीय और भारतीय-अमेरिकियों ने खुशी जाहिर की थी। इस 36 साल के युवा भारतीय-अमेरिकी ने न सिर्फ इलेक्शन जीता था, बल्कि अपने 11 प्रतिद्वंदियों के कुल वोटों से ज्यादा वोट हासिल किए थे। मगर कौन है बॉबी और वह किसका प्रतिनिधित्व करता है?’ शशि थरूर ने लिखा है अमेरिका जाकर बसने वाले भारतीयों को वह दो तरह कैटिगरीज़ में रखते हैं। उन्होंने लिखा है, ‘मैं समाजशास्त्री नहीं हूं, मगर मुझे लगता है कि भारतीय मूल के अमेरिकी दो तरह के हैं। एक तो वे, जो अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं और दूसरे वे जो वहां की संस्कृति में घुलमिल जाते हैं। बॉबी जिंदल दूसरी तरह के शख्स हैं। लूसियाना में प्रभावशाली प्रफेशनल्स के यहां जन्मे बॉबी ने भारतीय नाम (पीयूष) ठुकरा दिया और एक टीवी कैरक्टर से नाम अपना लिया। वह वहां के श्वेत लोगों के समाज में खुद को फिट करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक और कदम उठाया और हिंदू धर्म को छोड़कर टीनेज में ही रोमन कैथलिक धर्म अपना लिया।' आगे थरूर लिखते हैं, ‘ऐसा करने में कोई बुराई भी नहीं है। जाहिर है, वह टैलेंटेड लड़का था और जल्द ही उसने रोड्स स्कॉलरशिप हासिल कर ली। लेकिन वह अपनी पहचान को लेकर दुविधा में था। वह चाहता था कि लूसियाना का मूल निवासी लगे, मगर आईना उसे इंडियन होने का अहसास करवाता रहता था। एक बार हमें नेटवर्क ऑफ इंडियन प्रफेशनल्स से 'इक्सेलसियर अवॉर्ड' मिला। इस दौरान दिए भाषण में बॉबी ने अपने पैरंट्स के भारतीय मूल्यों का जिक्र किया। मगर भाषण की टोन वगैरह इस कदर अमेरिकी थी कि उन्होंने अपने भाई के भारतीय नाम का उच्चारण भी बिगड़े हुए रूप में किया। इससे पता चलता है कि यह भारतीय-अमेरिकी युवक हाइफन (-) के किस शब्द के प्रति झुकाव रख रहा था (यानी वह भारतीय दिखना चाहता था या अमेरिकी)।' थरूर ने लिखा है कि अमेरिकन ही बनना हो तो इसके और भी तरीके थे, मगर बॉबी का चुना तरीका बेहद अनोखा था। उन्होंने आर्टिकल में कुछ ऐसे भारतीय-अमेरिकियों का जिक्र किया, जो वहां अलग तरीके से पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। आर्टिकल में लिखा है, ‘इनमें विनिता गुप्ता ने अवैध अप्रवासियों के शोषण का मुद्दा कोर्ट में ले जाकर जीत हासिल की। भैरवी देसाई टैक्सी यूनियन की प्रमुख हैं, प्रीता बंसल न्यू यॉर्क की सलिसिटर जनरल बनीं और अब कमिशन फॉर रिलीजस फ्रीडम की हेड हैं।' आगे बॉबी की विचारधारा के बारे में बात करते हुए थरूर ने लिखा है., ‘लूसियाना के सबसे फेमस शहर न्यू ओर्लियांस में ज्यादातर अश्वेत हुआ करते थे। हरिकेन कटरीना ने ज्यादातर की जिंदगी छीन ली और घर तबाह कर दिए। मगर ऐसा कोई रेकॉर्ड नहीं है, जिससे पता चलता हो कि बॉबी ने खुद को अश्वेत लगों की समस्याओं से जोड़ा हो। करीब 10 हजार भारतीयों वाले राज्य में उन्होंने नस्लभेदी मामलों को उठाने से बचने की कोशिश की, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि अधिकतर गोरे लोगों का ध्यान खुद उनके भारतीय मूल के होने पर जाए। वह सबसे दकियानूसी श्वेत समाज का ही एक अंग बन गए (उन्होंने अपनी पत्नी सुप्रिया को भी कन्वर्ट होने को कहा और आज दोनों चर्च जाते हैं)। ज्यादातर भारतीय मूल के अमेरिकी गन कंट्रोल के पक्ष में हैं, महिलाओं को अबॉर्शन करने का फैसला लेने का अधिकार देना चाहते हैं, अप्रवासियों के हितों की बात करते हैं और स्कूल प्रेयर का विरोध करते हैं। मगर जिंदल इन तमाम मुद्दों को लेकर भारतीय मूल के अमेरिकियों के खिलाफ खड़े हैं।' आगे थरूर ने लिखा है, ‘इस सब के बावजूद बॉबी ने इंडियन-अमेरिकन कम्यूनिटी से समर्थन मांगा। पिछली बार जब वह गवर्नर बनने के लिए लड़े थे और हारे थे, तब समर्थन भी मिला था। मगर उनका समर्थन करने वाले भारतीय-अमेरिकी उनके पॉलिटिकल विचारों के बारे में नहीं जानते थे। मगर गोरे मुल्क अमेरिका में भारतीय ‘अपने जैसे’ को ऊंचे पद पर पाकर उन्हें राजनीतिक सफलता का अहसास मिलता है। इसलिए उन्हें बॉबी के विचारों से फर्क नहीं पड़ता।' आखिर में कांग्रेस सांसद ने कहा है, ‘भारत के लोग कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स, हरगोविंद खुराना और सुब्रमण्यम चंद्रशेखर जैसे ही एक और अमेरिकी-भारतीय की कामयाबी पर खुश होते हैं। मगर ध्यान रहे कि इनमें से किसी ने भी अपनी कम्यूनिटी को लेकर इस तरह से बदलने वाला रवैया नहीं दिखाया था। हमें गर्व ही करना है तो भूरी चमड़ी और भारतीय नाम पर गर्व करें, क्योंकि बॉबी जिंदल के पास यही है। हमें यह सोचने की भूल नहीं करनी चाहिए कि जो वह कर रहे हैं, हमें उसपर गर्व होना चाहिए।' शशि थरूर का आर्टिकल इंग्लिश में पढ़ने के लिए क्लिक करें:Should we be proud of Bobby Jindal?